जब तक मन मैं चोर है तब तक ध्यान नहीं लगता
“Till the time their is connivance in the heart, meditation doesn’t happen”

इस चोर को भागने के लिये मनुष्य पूजा व्रत भजन प्रार्थना योगाभ्यास करता है।
“To get rid of this thief (connivance), the human being does rituals, fasting, bhajan, prayer and yoga”

जब तक चोर है तब तक ध्यान मैं बैठते ही मन विचलित होने लगता है अपने को किसी ना किसी कार्य मैं लगाने को आतुर रहता है और शरीर मैं दर्द ओर ऐंठन होने लगती है।
“Till the time the thief is there in the heart, as soon as one sits in meditation, mind becomes restless and moves to engage in something else to keep busy; the body starts to stiffen and physical pain arises”

जब मन का चोर कठोर साधना ईश्वर और गुरु कृपा से सुधर जाता है स्वच्छ हो जाता है तो एक शिशु की तरह निष्कलंक मन सहज ही ध्यान मैं चला जाता है।
“When the thief of the heart is reformed using rigorous spiritual practice, grace of God and the Guru, it becomes pure and like an innocent child the being naturally goes into meditation.”

स्वच्छ मन ध्यान के द्वारा दिन रात अपने भगवान को ढूँढता है जैसे एक शिशु अपनी माता को ढूँढता है।
“Purified mind searches for its God day and night through meditation just as a child searches for its mother”

पूजा व्रत भजन प्रार्थना योगाभ्यास सब अपने भगवान के साथ रहने के विभिन्न तरिके बन जाते हैं। इनमे एक दिव्य आनंद आने लगता है।
Ritual, fasting, bhajan, prayer, yoga become different means to seek the company of God. A divine joy emerges in all these practices”

जैसे माँ अपने शिशु को कब क्या करना है ज्ञात करा देती है वैसे ही भगवान सीधे भक्त को कब क्या कैसे करना है यह बता देते हैं।
“Just as the mother tells the child what to do when, Divine informs the refined devotee as to what to do, how and when”

ऐसा भक्त योगशक्ति की द्वारा ईश्वर से मिलता जाता है और अंत में अपने ईश्वर मैं लीन होकर अपने जीवन के लक्ष्य को साकार कर लेता है।
“Such a devotee starts blending in his or her God through the power of Yoga and in the end merges with his or her God and realizes the ultimate purpose”


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